आज का "एथिक्स"

सबके सामने बड़ी-बड़ी बातें, लम्बे वादे करते हैं
निभाने के समय मगर कुछ शर्तें नयी ले आते हैं
ढाबे की तरह दाम वसूला, बंटना था भंडारे का भोग
कितने "एथिकल" हैं कुछ लोग......

आश्रय देने का एहसान, किराया पाकर भी दिखाते हैं
अबाधित अधिकार बताकर, नए दायरे निस दिन बनाते हैं
अनिवार्य निमंत्रण का प्रचलन, वो यहाँ बेधड़क चलाते हैं
ऐसे ही तो नहीं वो "एथिकल" कहलाते हैं........

वो कहते तुम नहीं सीखते, हम तो बहुत पढ़ाते हैं
आज की लीक में वो बात, वो जज्बा हम नहीं पाते हैं
इसी कारण अब आधा "लेक्चर", तुमसे ही "प्रेजेंटेसन" करवाते हैं
हर कदम बड़े गर्व से "एथिक्स" को हम अपनाते हैं.....

बिना म्याऊं की उस बिल्ली को, जिसका करती थी दुनिया मान
बना अपाहिज वो समझाते, "चेंज" हुआ ये बड़ा महान
कल चूहे थे शेर उसके आगे, बिचारी अब चूहों से ढेर
"एथिकल" लोगों के "विजन" का ही तो है यह फेर....

पांच "सेंचुरी" से सात "सेंचुरी" पर एक ही "इनिंग" में आते हैं
सात से बीस भी जल्द ही होगा, बड़े गर्व से इतराते हैं
फिर अनदेखा कर सच ही कहते, दूसरों का कष्ट न देखा जाता
आखिर "एथिक्स" से है हमारा बड़ा गहरा नाता.....

पूरा भी जहाँ रहा अधुरा, फिर भी कोई नहीं हैरान
"क्वालिटी" छोड़ "क्वांटिटी" पर जिनका हर पल ध्यान
देंगे नहीं पर बहुत चाहिए, ऐसा सम्मान का व्यापार
बनता है किसी बड़े आदमी के "एथिक्स" का आधार.....

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