और न कोई होगा

कौन करेगा हंसकर तुमसे, घंटों फ़ोन पर बात
रिंग होते ही दौड़ पड़ेगा, दिन हो या हो रात
आठवीं बार भी उस किस्से को, सुनके जो न चिढेगा
वो तो बस, मैं ही था और न कोई होगा

कौन पढ़ेगा सांस रोककर, ख़त को तुम्हारे यार
फिर अगले की बेसब्री में, जब टोकेगा दस बार
तब डाकिये की झिड़क से भी, जिसका मन न दुखेगा
वो तो बस, मैं ही था और न कोई होगा

कौन हंसेगा बिना बात के, याद अगर कुछ आये
उस दो पल की तफरी पर, जो घंटों तक मुस्काए
मनचाहा कुछ न भी हो तो, एक शब्द न कहेगा
वो तो बस, मैं ही था और न कोई होगा

कौन रहेगा खोया इसमें, कि कैसे तुम्हें हंसाएं
आज जो सर ने गुड बोला, मौका पाकर तुम्हें बताएं
तुमको ही सब देकर भी, तुम्हारा एहसान कहेगा
वो तो बस, मैं ही था और न कोई होगा

टिप्पणियाँ

  1. कौन हंसेगा बिना बात के, याद अगर कुछ आये
    उस दो पल की तफरी पर, जो घंटों तक मुस्काए....
    really touched by ur poem... :)

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट