तुम इतनी अच्छी कैसे हो!


हंसती हो मुस्काती हो, पर कभी पास न आती हो 
बोल तो देती इतना कुछ, फिर भी बहुत छुपाती हो 
देख के तुमको लगता है आँखों की पोषण जैसे हो 
मन मेरा सोचता रहता है तुम इतनी अच्छी कैसे हो

उलझन को सुलझाती हो, बालों को उलझती हो 
सपनों की दुनिया में, कितनों को पहुंचाती हो
तुम्हारे स्वप्न में औरों की घुसपैठ मगर कैसे हो
मन मेरा सोचता रहता है तुम इतनी अच्छी कैसे हो

सोच रहा था आज मगर, क्या तुम भी कभी रोती हो 
हम तो अक्सर रहते हैं, क्या तुम भी परेशान होती हो?
हमारे संकट तो तुमसे संभले, तुम्हारी पर हल कैसे हो?
मन मेरा सोचता रहता है तुम इतनी अच्छी कैसे हो 

दुनिया की कमजोरी को, अपने बल पर संभाला जो
पतली सी उस डोरी को हर पल यूँ संवारा जो 
पर बदल जाये जो मन तुम्हारा, फिर तो गुजारा कैसे हो 
मन मेरा सोचता रहता है तुम इतनी अच्छी कैसे हो 

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