ऐसे मगर हम साथ तो हैं
दिखते अलग किनारों की तरह, ऐसे मगर हम साथ तो हैं
दरिया सूखे तो जानेंगे सब, इक जिस्म के ही दो हाथ तो हैं
कुछ बोलिए न उनके खिलाफ, वादों को भुलाके जो निकले
माना कि हम दिखाते नहीं, पर अब भी दिल में जज्बात तो हैं
मशगुल हुए अब जो इतना, मत सोचना तो सब भूल गए
दिन रहा यार-व्यापार के नाम, रोने के लिए ये रात तो हैं
हँसते हैं अब याद आये जो, वो जन्मों संग रहने के वादे
न बदले हम न बदले तुम पर, बदले हुए ये हालात तो हैं
जो लेकर एहसान माना था, उधार के उन झूठे सपनों का,
रो-रोकर अब जो चुकाते हैं, उनके ही ये करामात तो हैं
खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएं