षड-रिपु

काम की अग्नि जलती जाए, देत न पर चमकार 

ये भोग जो जितना खाये, पर आवे नहीं डकार। १।


क्रोध किया और मुक्का मारा, टूटा नहीं दिवार 

हड्डी टूटी, हथेली सूजी, संस्कार हुआ दरार।२।


मद में डोले, सबको तोले, भर मन में अहंकार 

बस अपने को भारी समझे, हो हल्का इनका सार।३।


लोभ में तत्पर, मन में अक्सर, छुप जाता धर्म का सार 

जितना पाये, ज़्यादा चाहे, न हो इच्छा कभी पार।४।


मोह में पर कर, रात न सोवे, तन मन चढ़े बुख़ार 

मिट्टी देखे सोना समझे, इनके आँखों में अन्धकार।५।

 

मात्सर्य में खुद को जलाएँ, देख कर दूजे का संसार 

ज़हर पिलाकर खुद को सींचे, चाहे औरन का अपकार।६।

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