कौन पूछे मुझे यहाँ ?
कुछ तो हैं प्याला के सेवक, कुछ को मिलती धुंए से राहत
कुछ पैसे की दांव लगते, जोड़ घटा बस हिसाब मिलाते
कुछ काम में डूबे रहते, कुछ पैसे से पैसे बनाते
इनमें से एक न मेरा जहाँ, तो फिर कौन पूछे मुझे यहाँ!
कुछ साहब को खुश हैं रखते, तभी तो इ.एम्. आइ हैं भरते
कुछ नेटवर्किंग के पथ चलते, लोगों से हँस-हँसकर मिलते
मन के रस्ते चलनेवाले, बेफिक्र काम में ढलने वाले
ने रखा किसी से मतलब कहाँ, तो फिर कौन पूछे मुझे यहाँ!
सच्चाई का सब हैं रटते, पर मौका पाते ही पीछे हटते
सब तो चाहें एक सितारा, खुद जलकर जो करे उजियारा
मैंने कहा आओ जलते हैं, घर-घर को रौशन करते हैं
पर और कोई तैयार कहाँ, तो फिर कौन पूछे मुझे यहाँ!
इसी भीड़ में दिखी खड़ी वो, दिल दिमाग दोनों से बड़ी वो
पर जो आग मुझे जलाती, एक लपट भी उसे छू न पाती
बड़ा अचम्भा समझ न आया, उसने हाथ भी नहीं बढाया
और कोई चारा भी कहाँ, तो फिर कौन पूछे मुझे यहाँ!
एक परी सी आई थी, एक दुनिया नयी रचाई थी
हर पल मन से उसे पूज रहा, अंतर्द्वंदों से जूझ रहा
कैसे इन्हें मैं समझाउं, क्या जताऊं और क्या न बताऊँ
उनको भी इसकी भनक कहाँ, तो फिर कौन पूछे यहाँ !
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