दो भिखारी

१। एक भिखारी 


बेघर, भूखे, फटे चीथड़े में 

घर घर हाथ फैलाए।

आँख में आँसू, मन में लज्जा 

हर कष्ट में जीते जाए।

कितना अभागा हूँ मैं भिक्षुक जग में 

असह्य है यह पीड़ा।

कब देंगे ये मुक्ति मुझको 

बड़ी निष्ठुर समय की क्रीड़ा। १।


२। एक राजकुमार 


अभिनय का बड़ा शौक़ीन था 

एक उम्दा कलाकार।

रूपवान भी, धनवान भी 

एक राज्य का राजकुमार।

भिक्षुक बनकर आज के स्वाँग में 

मंच पर ठोकर खाए।

हर यातना, हर निष्ठुरता पर 

मन ही मन मुसकाए। २।


हाहाकर एक के मन में, और दूजे मन में मुस्कान,

नहीं अंतर बिलकुल दोनों में, जो गए मर्म को जान।

ये जगत भी मंच है प्यारे, जिसमें माया का जाल,

स्वयं को भूले, दुःख में झूले, बढ़ता जाए जंजाल। ३।




 



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